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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-6 / दिनेश बाबा

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41
मक्का के रोटी हुवै, आ गोटा के साग
खाय अमीरें सौख सें, निर्धन के छै भाग

42
गैया हुवै बकेन जब, मिट्ठो लागै दूध
स्वाद न दै छै साफड़ी, आ कच्चा अमरूद

43
नेता सिरजै के धड़ी, भाबै सिरजनहार
बल-विवेक डालै बखत, देल्कै भ्रष्टाचार

44
मानव के सिरजै घड़ी, ब्रह्मा करी विचार
गुन ही गुन सब देलकै, हौलै साहितकार

45
सब औगुन भेलै जमा, तब बनलै हैवान
जेकरो ग्रासो लेॅ प्रभुं, सिरजलकै इंसान

46
जारी छै आजो तलुक, देव-दनुज संग्राम
कर्मों से कहलाय छै, रावन या श्रीराम

47
मसजिद, गुरूद्वारा कहो, मंदिर या शिवधाम
मंजिल सब के एक छै, जे चाहो लेॅ नाम

48
निर्धन के तकदीर में, अब सुलगल छै आग
‘बाबा’ कठिन परिश्रमें, बदली दै छै भाग