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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-11 / दिनेश बाबा
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मिहनतकस मजदूर के, छेकै अहम सवाल
चाहै दोनो जून के, रोटी आरो दाल
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‘बाबा’ पेटू के सदा, भोजन लगै लजीज
दुकनदार केॅ वही ना, गाहक हुवै अजीज
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जौं अधवैसू वर छिकै, कमसिन छै कनियाँय
कोन विवशता सें बिहा, करकै बापें-माँय
84
सतरो के कनियाँय छै, सत्तर के छै बोॅर
‘बाबा’ काॅपै हाथ जौं, कना चलैतै होॅर
85
‘बाबा’ के सतसई छिकै, छै फूलो के हार
दोहा सें करले छथिन, भाषा के श्रृंगार
86
सुख भोगै कहिने यहाँ पनरो प्रतिसत लोग
बाकी वंचित कथी लेॅ, ई कहिनो संयोग
87
कोय मजा संे सुख करै, कोय खटै दिन रात
के जवाब देतै भला, ई समता के बात
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कमसिन वधू बूढ़ो पिया, जैसें पक्का आम
तेज हवा, बुझता दिया, की होतै अंजाम