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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-22 / दिनेश बाबा

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169
‘बाबा’ संकट के घड़ी, मत बैठो चुपचाप
करियै कुछ उद्योग भी, या हनुमत रो जाप

170
मारै छै जौनें हिरन, कहिनों छिकै कसाय
‘बाबा’ अहिनो दुष्ट केॅ फांसी दिलो जाय

171
‘बाबा’ जे शैतान छै, बनबै नंगा चित्रा
नाश करै जें संस्कृति उनै हमरो मित्रा

172
पेटू खैलक पेट भर, तभियो रहै उदास
अचरज सें देखै सभे, जे भी छेलै पास

173
नौ दर्जन पूड़ी रहै, आ ढेरी पकवान
पेटू लेली ई रहै, थोड़ो सन जलपान

174
फनु ऐलै कुछ देर में, लस्सी के जब दौर
बीस ग्लास पीबी करी, कहलक लानो और

175
बोड़ा, बैगन सें कहै, तों बादी छो भाय
पर हमरा सें बेसिये, लोगें तोरा खाय

176
मटर, खिसाड़ी, घंघरा, भी लानै छै बाय
मतर कि बादी छै बहुत, अदरख, पोय, कलाय