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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-32 / दिनेश बाबा
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मानव मन के पारखी, तुलसी, सूर, कबीर
एक प्रेम छै सम्पदा, एक कलम जागीर
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एक मुगलिया बादसा, छेलै आलमगीर
एक हाथ कुरान रहै, दूजा में समसीर
251
‘बाबा’ भुखलोॅ केॅ जना, भोजन लगै लजीज
दुकनदार के वही ना, गाहक हुवै अजीज
252
दोष न अपनों देखथौं, देखै सब के दाग
‘बाबा’ ऐसन बात सें, लागी जैथौं आग
253
दुःख होथौं उम्मीद सें, जे नै पूरा होय
बेहतर छै कि आसरा, अधिक न करियै कोय
254
अंग्रेजी भाषा भला, कहिनो छै हो भाय
डैड, पिता कहलाय छै, माता ममी कहाय
255
बलत्कार में लिप्त छै, खुद ही थानेदार
कहिने नी बढ़तै वहाँ, ‘बाबा’ भ्रष्टाचार
256
पच्छिम केरोॅ सभ्यता, छिकै फिरंगी रोग
जीवन पद्धति में जहाँ, छै भोगे ही भोग