भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-43 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=दोहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

337
भक्ति-प्रेममय कृष्ण रं, के भेलो छै कंत
प्रेमो के अनुरूप जें, दै छै फलो तुरंत

338
कृष्ण सखा अर्जुन रहै, जिनकर सच्चा मीत
समरभूमि में यही लेॅ, होलै सच रो जीत

339
दुखिया सीता माय रं, नैं भेलो छै कोय
के जानै छै रामप्रभु, भी दुख सहले होय

340
दुष्ट कुचक्री पातकी, छलै सुयोधन नीच
महासमर होलै तहीं, कौरव पांडव बीच

341
एक युधिष्टिर धर्म के, अनुयायी विस्वस्त
लेकिन दुर्याेधन रहै, राज भोग में मस्त

342
गांधारी के आचरन, अंधा पति के संग
पुत्रामोह ने अंततः देलक युद्धक रंग

343
अर्जुन पर श्री कृष्ण के, रहै भक्त रं प्रीत
महासागर में धर्म के होलै तभिये जीत

344
दौलत बढ़ै अमीर के, जें लै सूद-बियाज
साहूकारी के छिकै, यही एक अंदाज