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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-47 / दिनेश बाबा
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कागा रे जइबे अगर, तों पियवा के देस
याद करै छी हर घड़ी, कही दिहें संदेस
370
असकेली हय जिन्दगी, नैं आबै अब रास
कागा रे तों जो अभी, मोर पिया के पास
371
हे देवर कहियौं कना, तोरा दिल रो बात
भाय गेलें भेॅ गेल्हौं, महिना अब छो-सात
372
की की कहियौ गे बहिन, हम्में मन के बात
तन दहकै, मन छेॅ विकल, पावस में दिन-रात
373
बड्डी गरम लागै रितु, चैत, जेठ, बैसाख
बिन भट्ठी आगिन बिना, करतै जारी राख
374
बीती गेलै बहुत दिन, गर्मी आ बरसात
गेलै पिया कमाय लेॅ, सिसकै छै अहिवात
375
ढेर दिन नैं पिया रहो, तों हमरा सें दूर
हमरा, साथें लै चलो, बनबै हम मजदूर
376
असकेली स्वामी बिना, नारी के की अर्थ
जीवन के संग्राम भी, लड़ियै बनी समर्थ