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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-49 / दिनेश बाबा

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385
अंतहीन दुःख भोग में, देह रोग के घोॅर
यौवन के उद्वेग में, लागै नै छै डोॅर

386
रोग निवारन के छिकै, ‘बाबा’ जे आधार
योग साधियै बस वही, असली छै उपचार

387
करो दवा, करतें रहो, कष्ट नैं होथौं दूर
योग साधना के बलें, मिटथौं रोग जरूर

388
आयुवृद्ध केॅ चाहियो, त्यागी दै सब भोग
जौने रोग भगाय छै, करै वही उद्योग

389
उमरदार केॅ अक्सरंा, घेरी लै छै रोग
रोग निवारन वासतें, करै ध्यान आ योग

390
खान-पान सादा रहेॅ, रखियै उच्च विचार
सफल योग के छै यही, एक मात्रा आधार

391
अपनो तेॅ अपनो हुवै, जोरू, जगह-जमीन
गैर जगह पर एन्हौं केॅ, हुवै न सुख के नीन

392
नीको नै छै चाकरी, रहबो ताबी तोॅर
छै ओकर सें भी बुरा, रेहन केरो घोॅर