भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-55 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:48, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=दोहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
433
काम सफल होथौं वही, जै मंे छै उत्साह
लोगें देखी केॅ करै, अरे वाह जी वाह
434
बेहतर कामों में अगर रहभो सतत सचेष्ठ
काम सराहल जाय छै, जे भी होथौं श्रेष्ठ
435
जे करना छौं करी लेॅ, मन के इच्छित काज
बीती जैथौं जे घड़ी, घुरी न ऐथौं आज
436
काल सभे उत्तम छिकै, जे भी छांै उपलब्ध
बीती गेला पर वही, बस करथौं असतब्ध
437
कलाकार के जिन्दगी, होथैं छै निर्बंध
मोॅन हुवै पंछी जकां, उड़ै सदा स्वच्छंद
438
मन बहेलिया होय छै, एक उमिर के बाद
नेता बनलो छै तहीं, एक बड़ा सय्याद
439
एक अभागा प्रांत ई, बनलै सदा शिकार
त्यें बिहार अब लगै छै, जना रूग्न बीमार
440
सालगिरह मनतै कना, शादी के हो भाय
खर्चा सें फाजिल कभी, होथैं नैं छै आय