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जब-जब आँधी उठते रहलै / कैलाश झा ‘किंकर’

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जब-जब आँधी उठते रहलै ।
फुल्ली बतिया झड़ते रहलै ।।

शिक्षक केॅ सट्टा सेॅ अबतक,
बुतरू सब्भे डरते रहलै ।।

देश केॅ चिन्ता छै जेकरा नै,
कुर्सी खातिर लड़तें रहलै ।।

गुंडा गर्दी नै छै अच्छा,
कवि-लेखक सब कहतें रहलै ।।

धूप, हवा, ठंड़ी, गर्मी सब,
पत्थर मकतें सहतें रहलै ।।