भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भीतर जब मन गलता है / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 26 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=द्वार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भीतर जब मन गलता है
आँसू बना निकलता है
फिर गजलों के आँसू छलके
फिर किसका दिल जलता है
मेरी गजल उसी की बातें
जो दुख में ही पलता है
उसके हाथ कहाँ से होंगे
हाथों को जो मलता है
क्या होगा तलहटवासी का
पर्वत खड़ा दहलता है
अमरेन्दर की गजल सुनाओ
जिसका सिक्का चलता है।