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अब भरोसा क्या किसी का / अमरेन्द्र
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अब भरोसा क्या किसी का
जब न अपनी जिन्दगी का
उम्र भर रोना पड़ेगा
दाम जो पूछा खुशी का
तुमसे मैंने दिल लगा कर
हाल जाना दोस्ती का
कमर नंगी जेब भारी
रूप पाया इस सदी का
इस अंधेरे की गली में
किस जगह घर रोशनी का
आदमी के दिल को देखा
दिल नहीं था आदमी का
अब नहीं है तो हुआ क्या
था जमाना शायरी का।