भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मायतां री सीख / हनुमान प्रसाद बिरकाळी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमान प्रसाद बिरकाळी |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जद माइत हा
समझांवता हरमेस
देंवता सीख
पण बा सीख
उण घड़ी
भोत लागती
खारी-खारी
सीख माथै चालतां
पूगता पण ठावै ठिकाणैं।

आज जद
नीं है माइत
सीख रै गेलां
जमगी रेत
अब पिछतावां
पिछतायां पण
आवै काई हाथ
जद चुगगी चिड़कली
समझ रो खेत।