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कागद रै खेत / हनुमान प्रसाद बिरकाळी

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खेत बिकग्या
इण रै ताण
जूण रा
अबखा दिन
कीं धिकग्या
अब तो कोरां
कलम रै हळ
कागद रै खेत
मन री फसलां
पण
आं खेतां
कद लागै फळ
आं माथै भंवै
आलोचना री लूआं
गुटां री त्रिजटा।