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कुरसी री माया / मधु आचार्य 'आशावादी'

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किण-किणरी सुणै
कोई नौकरी मांगै
कोई जमीन
कोई ट्रांसफर
तो कोई ठेको ठरड़ो।
सुबै सूं सिंइया तांई
मांग ही मांग
मजो तो इण बात रो
कै बै किणी नै ना नीं कैवै
बातां मांय हर चीज देवै।
म्है चकरीबम
सोच्यो-
किण तरां मानीजसी सगळां री बातां
डरतै-डरतै पूछ ई लियो।
बै होळै-सै मुळक्या
बोल्या-
‘हां ई तो भरणी है
फेर ना क्यूं करणी !
चुणावां बाद
किणनै देणी है अर किणनै लेणी है,
आ तो चुणाव री रीत है
भाईड़ा, खाली कुरसी सूं प्रीत है।‘