भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बकरी बढ़ै चकरी / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूझै तो घाटो
टळै तो घाटो
बांध पाटो
भाग बकरी रा
कियां घड़्या
समदरसी करतार!
होवै बळी
चढ़ै बकरी
थारै थांन
राखै मान
मेमणां नै टाळ
भरै पेट
पराई जाम रा
पण थूं पूरै
मनस्या मिनख री!

जे बकरी देवै दूध
रळा'र मींगणीं
तो जगती कथै कोथ
बिलोवै थूक
दूध दियो तो दियो
मींगणीं रळा'र!
बकरी डरै
मरै तो भी मरै
खाल रा खल्ला
पगां मिनख रै
आंत री तांत
पींजै रूई
कातै सूत
बांटै अर बजै
ऊत री ऊत!

जींवती रा
कतरीजै बाळ
ढाबै सरदी
जीया जूण री
खुद नै टाळ!

भोळी बकरी
चढ़ै चकरी!