भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेह होवै तो म्हे होवां / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तपती चालै
बळबळती बगै
बादळां नै झूरती
आभो धरती एक करती पून!

झूंपड़ा तपांवती
गाछ सुकांवती
पाणीं बाळती
लू बणी
धोरी रो सोधती
अंतस पाणीं!

लूआं रो
फंफेड़ीज्योड़ो धोरी
आभो तकै
करै अरदास
मेह करो
मेह होवै तो
म्हे होवां!