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जीवण मांय घर / मधु आचार्य 'आशावादी'
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गांव मांय हाको
रामू चालतो रैयो
रात तो राजी-खुसी
घरां गयो हो
पण दिन ऊगतां ई
आया मरण रा समाचार
लोग मानण खातर
नीं हा त्यार।
घर मांय हो हाको
हरेक हो दुखी
गांव रो अेक ई मिनख
इण बात सूं नीं हो सुखी
सब जाणता -
तीन बरसंा सूं सैंधो अकाळ
बणग्यो रामू को काळ
बेटी री पढाई छूटगी
जोड़ायत री भी सांस टूटगी
बेटो बणग्यो मजूर ........
स्सौ कीं बदळग्यो
बाळणजोगड़ो अकाळ
जीवण मांय घर करग्यो।