भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूख : तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रूंख नै ही भूख
डाळी काढण री
डाळी माथै
हर्या काच्चा पान
पानां बिचाळै पुहुप
पुहुपां सूं बणता
मीठा फळ
फळ भखता
जीव-जिनावर
पण
कदै ई नीं ही भूख
घर री चौगाट
खाट
मेज-कुरसी बणन री
भूख तो पसरी
मिनख री
जकी जीमगी
समूळो रूंख!