Last modified on 29 जून 2017, at 07:52

मानसी री उदासी / दीनदयाल शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:52, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्हूं बटाऊचारै
ब्याव में गयौ
जैपर
अर
इग्यारै बरसां री
बेटी मानसी भी
ही साथै

ब्यावआळां रै
पूगतांईं घरां
म्हे
खड़्या रैया
घणी ताळ
आंगणै बिचाळै

बठै मचरी
आफळ-ताफळ
अर
सगळा होर्या
उकळ-चुकळ

म्हारी आँख्यां में झांकती
घर नै सरांवती
अर
घरआळां नै
बिसरांवती
मानसी बोली
पापा
मकान तो
भौत फूटरौ है
पण लोग
चोखा कोनी

म्‍हूं बोल्यौ
ईंयां नीं कैया करै
थोड़सीक ताळ में
तैं
के देख लियौ इस्सौ

बा
उदास होय'र बोली
अजे तांईं
कणी बैठण रो ई
नीं कैयौ

म्ह होळैसीक बोल्यौ
होळै बोल

सै'र है
गांव थोड़ो ई है

सै'र रा
नेम कायदा
अळगा हुवै।