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टाबर - 10 / दीनदयाल शर्मा
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टाबर
कित्ता हुवै संतोषी
दोय रिपियां री
चीज सूं
हुज्यै राजी
अर
कित्तौ चटकै करल्यै
बिसवास
हरेक री बात माथै
टाबर नीं जाणै
दगै रौ अरथ
पण
सीखज्यै
आपां स
सो' कीं
अर हुज्यै
आपणै जिस्या।