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अचंभौ / दुष्यन्त जोशी
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अचंभै वाळी बात सुण'र भी
अचंभौ नीं करै
म्हूं देख्या
आँख्यां वाळा आंधा
अर जीभ हुवतां थकां
गूंगा मिनख नै
मिनख
क्यूं नीं देखै
अर
किंयां रै'वै मून
इत्ती भीड़ में ?