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निवा के तट पर-1 / सुधीर सक्सेना
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इस कदर
ख़ामोश बहती है निवा
कि मीलों मील
बतियाती नहीं किसी से
बहती चली जाती है चुपचाप
स्मृतियों में गहरी डूबी
निवा नदी नहीं
सजिल्द क़िताब है इतिहास की
उनके लिए नहीं निवा
कदापि नहीं, उनके लिए,
जो सरसरी निगाह दौड़ाते हैं
सफ़ों पर
निवा बाट जोहती है उनकी
निवा इंतज़ार करती है उनका
जो डूब जाते हैं समूचे
थाह पाने को
गहरे, अथाह जलराशि में