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सब दरवाज़े / कुमार पाशी
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मैंने अपने घर की सारी खिड़कियाँ सब दरवाज़े खोल दिए हैं।
सुर्ख़ सुनहरी गऊओं संग ऊषा भी आए
कच्चे दूध से मुँह धोकर चंदा भी आए
तेज़ नुकीली धूप भी झाँके
नर्म सुहानी हवा भी आए
ताज़ा खिले हुए फूलों की मनमोहक खु़शबू भी आए
देस देस की ख़ाक छानता हुआ कोई साधु भी आए
और कभी भूले से
शायद
तू भी आए
युगों युगों से
मैंने
अपने दिल की सब खिड़कियाँ सब दरवाज़े खोल दिए हैं।