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छंद 63 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
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दोहा
(कवि की उक्ति)
कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़, ता छन देब-मनाइ।
सुभ सिँगार-लतिका सकल, जग-फैलन के चाइ॥
भावार्थ: ऐसा सुन, मैंने दृढ़ता से कलम अर्थात् लेखनी हाथ में ली और ‘कुलदेव’ व ‘इष्टदेव’ को स्मरण कर ‘शुभ शब्द’ के उच्चारणपूर्वक ‘शृंगारलतिका’ को जगत् मंे फैलाने का उद्योग किया। यह ज्ञात रहे कि वेली आदि उद्यानों में सदा कलम ही लगाकर बढ़ाई जाती हैं और इसी युक्ति से एक की अनेक होकर फैलती जाती हैं।