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छंद 64 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
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सोरठा
(कवि प्रार्थना-वर्णन)
रसिक छमैंगे भूल, ग्रंथ लिख्यौ जिनके हितै।
पढ़त-गुनत सुख-मूल, प्रति आखर सबकौं सुखद॥
भावार्थ: अब रसिकजनों से प्रार्थना है कि मेरी भूल-चूक का क्षमापन करेंगे, क्योंकि यह ग्रंथ सुख का मूल है और इसका प्रति अक्षर सुखदाई है जो भक्तों के ही हितार्थ निर्माण किया गया है।