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छंद 275 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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दोहा

तिन कौ सुत अति अल्प-मति, ‘मानसिंह’ ‘द्विजदेव’।
किय ‘सिँगार-लतिका ‘ललित, हरि-लीला पर भेव॥

भावार्थ: जिनके पुत्र महाराज ‘मानसिंह’ ने जिनका कविता का नाम ‘द्विजदेव’ है ‘शृंगार लतिका’ नामक ग्रंथ श्रीराधाकृष्ण की लीला के विषय में लिखा।

विजयदशम्यां त्रिनवनिधि, विधुवत्सरइषमासि।
विदन्मुदे ‘जगदम्बया’ ग्रंथोऽसौ प्राकाशि॥

॥इति तृतीय सुमनम्॥