भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस्ती / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आभै मुळकतो चमकतो चांद
घूमर घालतो बायरो
टिमटिमावता तारां
चकारा भरती कोचरी
सरसंू री सौरम
कस्सी मोढै लियां करसो,
नहर रै तो
आं री ई बस्ती है।