भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नवो भूगोल / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:16, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दो सौ चौसठ
तीन सौ तीस
चार सौ पैंसठ
गिणती कोनी
नांव है गांवां रा
नहर रै सारै
बस्योड़ा
केई जाबक छोटा
तो केई मोटी मंडियां
जठै बजार है
गाड़ी-घोड़ा है
मिनखां रो मेळो है
डील री नसां दांई
नहर
अर लोही दांई
पाणी।