भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चार पांवडां ई सही / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ओपरै अर अबखै मारग
ओखो है
अेकलो चालणो।
सागै रै सायरै
सोरो कट सकै पैंडो।
चाल!
चार पांवडां ई खरों
कीं तो चाल
म्हारै सागै चाल!