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एक रसढारक प्रणयगीत / चंद्रभूषण
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हरियर फुनगी नजर न आए
पीयर पात चहूँ दिस छाए
हवा हिलोरि-हिलोरि बहे
मोरे मन महं आज बसंत रहे
गोरी तोरी देह बहुत सुकुआरी
केस झकोरि-झकोरि कहे
तोरे संग-संग में
मोरे अंग-अंग में
सुर लय गति ताल अनंत रहे
मोरे मन महँ हाँ मह-मह महके
तोरे तन महँ हाँ दह-दह दहके
धरती अंबर चह-चह चहके
गोरी तोरी-मोरी प्रीत चिरइया के
पर लागि अकास चलंत रहे
मोरे मन महँ आज बसंत रहे