भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रीत री आडी / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कींकर कोई सूय लेवै
दूजै रै पांती री नींद
कींकर कोई जाग लेवै
दूजै रै पांती रो जागण
फुटरापै सारू आरसी में नीं
अंतस में झांकणो पड़ै
प्रीत री आडी नैं अरथावण सारू
कम सूं कम।
चाळीस पगोथिया तो चढणो ई पड़ै।