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बूझ सकै सवाल / मदन गोपाल लढ़ा

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अबै छोडो बाळो!
उण जूनी ओळूं नैं
जिणरी फोटुआं तकात
बदरंग हुयगी
बगत रै हलकां सूं
बंद हुयोड़ै बैंक खातै रै उनमान
जिणमें लेण-देन रो
कोनी हुवै कोई मायनो।

उण घर साम्हीं सूं निकळतां
जिण में कदी भाड़ै रैया आप
अेकर तो थम जावै
पग
मतोमत्तै ई
पण उणरै दरूजै री
कुंडी खड़कावण सूं पैलां
हाथ पाछो खींचणो ई स्याणप है
इण सावचेती नैं बिसर्यां
ओळूं रै दरूजै सूं झांक'र
कांई अणसैंधो उणियारो
ओपरी निजरां सागै
बूझ सकै सवाल-
'क्यूं, कांई बात है?'