भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अेकायंत रो माहात्म्य / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केई काम अैड़ा हुवै जूण में
जका करीज सकै फगत अेकायंत में।

कुदरत फगत मिनख नैं
सूंपी है आ हेमाणी
सूरज-चंदा रै भाग में ई
कोनी लिख्योड़ो अेकायंत।

जद आदमी हुवै साव अेकलो
अैन नैड़ो आय जावै खुद रै
जद नीं देखतो हुवै कोई बीजो
देख सकै आपरो असल उणियारो
चिड़ी रो ई बोलारो नीं हुवै चौगड़दै
कर सकै बंतळ खुदोखुद सूं।

इण पिरथमी माथै
जकां जीत्यो है जुध खुद सूं
ओळख्यो है सबद रो सांच
तप्या है बै आखी जूण
अेकायंत में।

भीड़ में गम्योड़ा आपां
कठै ओळखां-
अेकायंत रो माहात्म्य!