भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुण है बो / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया रै
हरेक गांव में
पक्कायत लाधैला आपनैं
गाभा सीड़तो दरजी
बाळ काटतो नाई
अर टापरा संवारतो कारीगर।

दुनिया रै
हरेक घर में
आप जोय सको
काच, कांगसियो अर तेल-फुलेल।

फुटरापै सारू आफळ
मानखै रो
जुगां-जूनो सुभाव है
पण कुण है बो
जको जद-कद
धूड़, धुंवै अर आग सूं
बदरंग कर न्हाखै
मिनखपणै रो उणियारो।