भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवशता / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 11 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शेर नें
गिद्ध सें पूछलकै-
जंगल में ई दुर्गन्ध कैसन ?
गिद्धें कहलकै-
आदमी के लहास पड़ल छै
यै पर शेरें कहलकै-
ओकरा सलैटल्है की नै ?
जै पर गिद्धें कहलकै-
ओकर तन-मन पैहलै सें विषाक्त रहै
मरला के बाद आरो विषाय गेलै
खाय लायक भी नै रैह गेल छै।