Last modified on 15 जुलाई 2017, at 20:00

मुझको ही डाँटा / दिनेश चमोला ‘शैलेश’

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 15 जुलाई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दीदी भूली सैर-सपाटा
सबुह-सुबह ही
दही-परांठा,
खाकर करती
आटा-बाटा।
कोई नहीं पूछता मेरे
मारा दीदी ने क्यों चाँटा?

रोज सवेरे
दौड़ी आती,
मुँह बिचकाकर
मुझे खिजाती।
कितनी बार शिकायत की पर
कभी किसी ने उसको डांटा?

सोते-सोते
मुझे जगाती,
‘कुर्र’ कान की
काना-बाती।
मैं बोली क्यों करती ऐसा?
पर उलटा मुझको ही डाँटा!