भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैद छु / बैरागी काइँला
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 18 जुलाई 2017 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैरागी काइँला |अनुवादक= |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बाधें मैले जब हजुरको बिम्बलाई मभित्र
मेरो माया सब हजुरको दृष्टिको कैदभित्र
जानी जानी अझ हजुरलेहैन है–भन्नुहुन्छ
आँखामा कैद छु हजुरको–लाज भो ? –हाँस्नुहुन्छ ।