भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उकालीमा चढे पनि / दिनेश अधिकारी

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 23 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश अधिकारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


उकालीमा चढे पनि मान्छेलाई देखूँ
झर्दा पनि ओरालीमा मान्छेलाई भेटूँ
हँसाए नि, रुवाए नि, लगाए नि घाउ
मान्छेभन्दा टाढा हजुर ! छैन जाने ठाउँ

थोपाथोपा आँसुसँगै खसेको छ मान्छे
देउताभन्दा नजिक भै बसेको छ मान्छे
थापे पनि झुक्क्याएर लडाउने दाउ
मान्छेभन्दा टाढा हजुर ! छैन जाने ठाउँ

बाँच्नु प¥यो एक्लै भने भीर हुने कि खोला ?
सम्झँदा नि छाती पोल्छ के पो गर्ने होला ?
अर्को मान्छे चाहिँदो रै’छ सुन्न आफ्नै नाउँ
मान्छेभन्दा टाढा हजुर ! छैन जाने ठाउँ