Last modified on 24 जुलाई 2017, at 08:16

म लहरा भए / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:16, 24 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अहा ! म लहरा भए मनहरा हरा भू जरा
चुसी रस फुलाउँथे कुसुम वासका सुन्दर,
रमी हृदय आउँथे चिरबिराउँदा स्वर्चरा,
स्वदेश रस बन्न गो तर कवित्व यो वर्वर !