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आफ्नै बैरी मन / रमेश क्षितिज
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बिर्सिजानेकै माया झन् हुँदोरहेछ
चोट दिनेलाई खोज्दै मन रुँदोरहेछ
छाडी गए’नि रिसाई गाली गरे’ नि
मायालु त मायालु हो माया मारे’ नि
माया मार्नेकै माया झन् लाग्दोरहेछ
मन भाँच्नेकै मनले खुसी माग्दोरहेछ
चिठ्ठी च्याते नि कहिले चिनो फोडे नि
सम्झना त साथै उसको शहर छोडे नि
टाढा जानेकै रूप नजिक घुम्दोरहेछ
रुवाउनेकै तस्वीर मनले चुम्दोरहेछ !