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लाओ अपना हाथ / भवानीप्रसाद मिश्र
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लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो
नए क्षितिजों तक चलेंगे
हाथ में हाथ डालकर
सूरज से मिलेंगे
इसके पहले भी
चला हूं लेकर हाथ में हाथ
मगर वे हाथ
किरनों के थे फूलों के थे
सावन के
सरितामय कूलों के थे
तुम्हारे हाथ
उनसे नए हैं अलग हैं
एक अलग तरह से ज्यादा सजग हैं
वे उन सबसे नए हैं
सख्त हैं तकलीफ़देह हैं
जवान हैं
मैं तुम्हारे हाथ
अपने हाथों में लेना चाहता हूं
नए क्षितिज
तुम्हें देना चाहता हूं
खुद पाना चाहता हूं
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेकर
मैं सब जगह जाना चाहता हूं !
दो अपना हाथ मेरे हाथ में
नए क्षितिजों तक चलेंगे
साथ-साथ सूरज से मिलेंगे !