भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दानवोॅ के उत्पात / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 26 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनोकामना पूर्ण हेतु यज्ञ करै छै विश्व शान्ति आरु दुःख निवारण लेॅ
देव आरो दानवें धर्मनुष्ठान करै छै आपनों-आपनों सिद्धि पावै लेॅ

विश्वामित्रजी यज्ञ करै छेलै जंगल में
असुर उधम मचावै छेलै जंगल में

अति बलवान असुर दू छेलै
मारीच आरो सुबाहु नाम छेलै

यज्ञ समाप्ति होय लेॅ चललै
मांस-मदिरा फेंकी केॅ यज्ञ विध्वंस करै छेलै

आपनें से असुर-वध उचित नै समझी
कौशिक ने जाय के सोचलकै अयोध्या नगरी

धर्मों लेली जनम लेने छै मुनि केॅ ई मालूम छेलै
विष्णु रूप सें अइलोॅ छै राम ई बात केॅ जानै छेलै

यहेॅ सोची केॅ विश्वामित्र मांगै लेॅ गेलोॅ छेलै
दशरथ नंदन राम जो एैतै तेॅ यज्ञ रक्षा तेॅ होन्हैं छेलै