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दानवोॅ के उत्पात / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’
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मनोकामना पूर्ण हेतु यज्ञ करै छै विश्व शान्ति आरु दुःख निवारण लेॅ
देव आरो दानवें धर्मनुष्ठान करै छै आपनों-आपनों सिद्धि पावै लेॅ
विश्वामित्रजी यज्ञ करै छेलै जंगल में
असुर उधम मचावै छेलै जंगल में
अति बलवान असुर दू छेलै
मारीच आरो सुबाहु नाम छेलै
यज्ञ समाप्ति होय लेॅ चललै
मांस-मदिरा फेंकी केॅ यज्ञ विध्वंस करै छेलै
आपनें से असुर-वध उचित नै समझी
कौशिक ने जाय के सोचलकै अयोध्या नगरी
धर्मों लेली जनम लेने छै मुनि केॅ ई मालूम छेलै
विष्णु रूप सें अइलोॅ छै राम ई बात केॅ जानै छेलै
यहेॅ सोची केॅ विश्वामित्र मांगै लेॅ गेलोॅ छेलै
दशरथ नंदन राम जो एैतै तेॅ यज्ञ रक्षा तेॅ होन्हैं छेलै