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राम केरोॅ मांग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

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दोहा-
नृप दशरथ पुरोहित सें, लीन विचार विमर्श ।
पुत्र विवाह पर चर्चा, होय छेलै संघर्ष ।।

 ई बीचोॅ में द्वारपाल, सूचना लेॅ केॅ आय ।
महामुनि विश्वामित्रजी, महल द्वार सुस्ताय ।।

कुंडलियाँ-
राजा, पुरोहित संघर्ष, मिललै सहर्ष जाय ।
राजा खुश होय गेलै, मुनि के दर्शन पाय ।।
मुनि के दर्शन पाय, अर्ध्यार्थ माँगै नरेश ।
तब विश्वामित्रजी, जानलकै कुशल अवधेश ।।
परिवार सहित तोंय, प्रसन्न छौं तोरोॅ प्रजा ।
शुभकामना हमरोॅ, धन-धान्य सेॅ भरलोॅ राजा ।।
हायकू-
जन्म सफल/दशरथजी बोले/जीवन धन्य ।
उग्र तपस्या/ब्रह्मर्षि पद पैल्हेॅ/राज ऋषि सेॅ ।

हमरोॅ पूज्य/राजर्षि व ब्रह्मर्षि/दोन्हु रूपोॅ में ।
शुभागमन/परम पवित्र छै/अद्भुत भी ।

तोरोॅ दर्शन/राजमहल होलै/तीरथ वन ।
शुभागमन/उद्येश्य तेॅ बतावोॅ/आज्ञापालन ।

नम्र वचन/दिल-दिमाग भेलै/अतिप्रसन्न ।
विश्वामित्रजी/राजा सें कहलकै/करोॅ प्रतिज्ञा ।

शिरोधार्य छै/आपनें केरोॅ आज्ञा/प्रगट करोॅ।
पुरुषवर/सिद्धि हेतु यज्ञ में/राक्षस विघ्न ।

अनुष्ठान के/बेशी कार्य सम्पन्न/समाप्ति बाकी ।
दू ठो राक्षस/मारीच व सुबाहु/बलशाली छै ।

उत्साहहीन/हम्में होय गेलोॅ छी/उपायहीन ।
क्रोधी बनी केॅ/शाप दौं राक्षसोॅ केॅ/विधि विरुद्ध ।

हे नृप श्रेष्ठ/पराक्रमी राम केॅ/हमरार्पण ।
दिव्य तेजस्वी/विघ्वंसकारी राक्षस/अवश्य नाश ।

अनेक श्रेय/पावी होतै प्रसिद्ध/तीनोॅ लोकोॅ में ।
दोनों असुर/ठहरै नै सकतै/राम सम्मुख ।

राम छोड़ी केॅ/दोसरोॅ कोय नै जे/मारेॅ सकै छै ।
अहंकारी ऊ/कालपाश अधीन/राम्हैं मारतै ।

हमरो प्रण/राम हाथोॅ से वध/मारलोॅ बूझोॅ ।
राम की छेकै/हम्में जानै छियै/जानै वशिष्ठें ।

भूमंडल में/स्थिर बनलोॅ रहै/ धर्म व यश ।
राम अर्पण/करोॅ दशरथजी/विश्वामित्र केॅ ।

शुभवचन/पुत्र वियोग दुःख/शंकित मन ।
पीड़ित मन/कम्पायमान तन/अद्भुत छन ।

बेहोश, होश/भयभीत,विषाद/व्यथित मन ।
विचलितासन/मूरछित राजन/अचिन्तय छन ।

दोहा-
सुकुमार मनोहर राम, युद्ध-कला सेॅ हीन ।
असुर वीर बलवान छै, छल-कपट में प्रवीण ।

कुंडलियाँ-
बुढ़ापा में सुत भेलोॅ, दिल में राखौं प्यार ।
आँख के तारा छेकोॅ, सबके बड़ोॅ दुलार ।।
सबके बड़ोॅ दुलार, सेना सहित नृप तैयार ।
असुर बचेॅ नै सकै, करिये देवै संहार ।।
यज्ञ पूरा होतै, राक्षस होतै बेखफा ।
सेना साथें हम्में, देखोॅ क्षमता बुढ़ापा ।।
दोहा-
असुर परिचय बतलावोॅ, बोलोॅ रक्षक नाम ।
बतलावोॅ प्रतिकार विधि, पूरा होतै काम ।।

मारीच सुबाहु दू ठो, राक्षस छै बलवान ।
डालै छै विघ्न यज्ञ में, प्रेरक रावण जान ।।

रावण अति बलवान छै, देवादि मानै हार ।
मनुष्य टिकै नै सकतै, हम्में नै तैयार ।।

दोनों दैत्य अति बलवान, जे यमराज समान ।
जों यैं विघ्न डालै छै, असफल तीर कमान ।।

प्रबल पराक्रमी दैत्य दोनों छै
युद्ध विषयक उत्तम ज्ञानी छै

सुहृद सहित हम्में जावेॅ सकों
जो आपनें हमरा लेॅ जावेॅ सको

बन्धु सहित हमरोॅ निवेदन छै
नाबालिग राम पर किरपा करियै

अवधेश वचन सब सुनि केॅ
विश्वामित्र क्रोधग्नि में जललै

अति कुपित होय कहलकै
प्रतिज्ञा करी केॅ तोहें, आवेॅ

प्रतिज्ञा तोड़ै लेॅ चाहै छोॅ
रघुवंशी के योग्य नै छै, कुल विनाशके सूचक छै

हे नरेश्वर । तोरा यहेॅ उचित बुझावौं
तेॅ जैसें अइलोॅ छी वैसें हम्में जावै छौं

प्रतिज्ञा झूठा करी केॅ बन्धु-बान्धव सेॅ
घिरलोॅ रही केॅ सुख सेॅ रहोॅ

मुनि क्रोध सेॅ पृथ्वी काँपलै
देवता मनोॅ में भय समैलै ।