Last modified on 11 अगस्त 2017, at 22:16

सबको अपने-अपने जन की / अमरेन्द्र

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:16, 11 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=मन गो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सबको अपने-अपने जन की सुध आए फिर
अमरेन्दर ऐसा कोई इक गीत लिखो तुम।

बिन पावस के मोर-नृत्य हो आँगन-आँगन
हिचकी पर हिचकी खाए परदेसी साजन
बिना पठाए पाती प्रीतम दौड़े आए
साफ-साफ मोटे अक्षर में प्रीत लिखो तुम।

साँसों में कस्तूरी की खुशबू लहराए
मन गोकुल का गाँव लगे, ऐसा मुस्काए
चाहे जो भी लिखे छन्द मधुपुर के यश में
यमुना की पागल लहरों की जीत लिखो तुम।

महकेंगे कचनार प्यार के, ये महकेंगे
बिन फागुन तन-मन पलाश के ये लहकेंगे
लेकिन पहले टोडी, शाबरी, गुर्जरी में तो
रूठे पाहुन को प्राणों का मीत लिखो तुम।