कल मेरे ये गीत गीता की तरह / अमरेन्द्र
कल मेरे ये गीत गीता की तरह ही बन जायेंगे
लोग बाँचेगे कथा, मेरी तुम्हारी प्रीत की।
आज का मौसम-समय ये, प्राणों का कातिल लगे
ऐसी हालत में लगे तो किस तरह ये दिल लगे
बीच लहरों से संभाले ही निकाले चल चलो
जब तलक न नाव अपनी धीरे से साहिल लगे
जग सुलगती आँच है, खुद को बचाना है अभी
हाथ में लेते चलो यह जिन्दगी नवनीत की ।
पाँवों के नीचे ये जलते रेत की राहें अभी
ये कुसुम पथ हो भी सकते हैं, अगर चाहें अभी
मन के रेगिस्तान को आकाश तो पहले करें
इन्द्रधनु-सी खिल उठेंगी अपनी ये आहें अभी
आज हम आहत हुए लोगों की तीखी बातों से
यह हमारी हार ही शुरुआत होगी जीत की ।
आज हम दोनों चलें जिस राह हैं, चलते रहें
हर गली, हर रास्ते, हर साँस, पर मिलते रहें
आए-ना-आए शिशिर, मधुमास, पावस, ऋतुएं
हम कुमुद, कचनार, केसर, जूही, से खिलते रहें
एक दिन अपना वो मौसम हिरण बन कर आएगा
बन्द यह होने ना पाए साधना संगीत की।