भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धार्मिक विचारों को लेकर / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 16 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहंशाह आलम |संग्रह= }} वो साधु थे और कहाँ-कहाँ से नहीं आए...)
वो साधु थे और कहाँ-कहाँ से
नहीं आए थे
वो मौलवी थे और न मालूम
कितने धूल-धक्कड़ खाकर इकट्ठे हुए थे
दोनों ने कहा बिल्कुल निरापद
न्यायाधीश की तरह :
धर्मयुद्ध की समप्ति के बाद
हमीं तो बचेंगे
हमीं तो भोगेंगे
तमाम आसाइशें
धर्मयुद्ध में मारे जाएंगे
सारे भक्तगण