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हम अपन दास्तान की कहियै / जयनित कुमार मेहता
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हम अपन दास्तान की कहियै
केना छुटलौं परान,की कहियै
हमरा दुनिया तॅ ई बुझावै छै,
दर्द के खानदान, की कहियै
जब सेॅ बाऊजी छोड़ केॅ गैलै,
सून पड़लै मचान, की कहियै
असकरे हम सफ़र मेॅ निकलल छी
आरु एत्तेॅ समान, की कहियै
ऊ महाजन के रीन नै चुकलै,
घर मा बिटिया जवान,की कहियै
स्वाद अखनी तलक याद आवै,
ऊ बनारस के पान, की कहियै
ई बुढ़ारी मा याद धनिया के,
यहै एक्कै निसान, की कहियै