भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डारा-पाना डोलय / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 20 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प' |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रुक म डारा-पाना हर डोलय।
कोइली-मइना मगन मन बोलय।
फर गे चार, फर गे केंदूँ,
सज गे रुक-राई।
दू फसली लगे हावय,
देख तो पाई-पाई।
महुआ फूल के रस हर,
मता दीस हे भूईयाँ ला
देख तो परसा फुलवा हर,
सजा दीस हे भूईयाँ ला।