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बादर के मनमानी / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'

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देखा बादर के सईतानी।
करथे ओ कतका मनमानी।

गरजत-घुमरत आथे जी।
बिजली घलो चमकाथे जी।

हमला खुबेच सताथे जी।
बरसा घलो कराथे जी।

अबड़ चुहथे खपरा के छानी।
देखा बादर के सईतानी।