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मनुष्य को खा जाता है दुख / राकेश रोहित

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गेहूँ को घुन खा जाता है
और कभी-कभी पिस भी जाता है।

कीट खा जाते हैं हरी पत्तियाँ
और कभी मिल भी जाते हैं मिट्टी में।

सूखते पत्तों के संग
झर जाते हैं, जर जाते हैं
खाद हो जाते हैं।

मनुष्य को खा जाता है दुख

मनुष्य मर जाता है
दुख नहीं मरता

बस, धीरे से देह बदल लेता है।